“एक सच जो अभी भी ह्रदय में बसी जो कभी दूर से गीत सुना था मोर संग चलव रे ,,,, कहां जाहु बड़ दूर हे गंगा पापी इन्हें तरव रे शिवरीनारायण कवि सम्मेलन में पहली बार दूर से जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिया जी को सुना था तब से उन्हें मिलने की आस मन में थी पर उस समय मेरे लिए रायपुर और बिलासपुर में जाकर मिलना टेढ़ी खीर था पर उनकी कविताएं और गीत को सुनकर मन को संतुष्ट कर लेता था ।उनके कविताएं और गीत अंतिम ब्यक्ति की एक आवाज थी उन्हें पद्मश्री ,पद्म विभूण से नवाजा जाना था पर इस ओर कभी किसी ने ध्यान नहीं दिया। पर मैं मानता हूं वे भारत रत्न योग्य हैं ?
वे सरल सहज और मृदु भाषी के साथ साथ जन नायक रहे जिन्होंने अपने कविता और गीत से समाज की सेवा कर दबे कुचले लोगों आवाज को बुलंद किया वे अपने गीत के माध्यम से आडम्बरों को भी नकारा है ।आज भी उनके गीत जब बजते हैं मन में एक अलग उमंग और उत्साह होती है कहीं न कहीं वे साहित्य से समाज की अंतिम समय तक सेवा किये जिनके अवदानों को भुलाया नहीं जा सकता । बहुत कुछ कहने है पर कह नहीं पा रहा हूँ । करमागढ़ (रायगढ ) शिवकुटीर बालकवि शंभु लाल शर्मा जी के घर 2017 में कवि सम्मेलन का आयोजन था तब मैं अपने मित्रों के साथ पहुँचा था और इस दिन मुझे मस्तुरिया जी से मिलने का सौभाग्य मिला पूरे 15 -17 वर्ष बाद । मैं बहुत खुश हुआ उनके हाथों से मुझे सिध्देश्वर सम्मान से नवाजा गया ।
यह पल आज भी मुझे उमंगित और आनंद का अहसास कराता है ।उनकी साहित्य सेवा को छत्तीसगढ़ में सम्मान की जरूरत है उनके नाम से साहित्य के क्षेत्र में सम्मान ,अलंकरण की स्थापना होनी चाहिए। अब वे नहीं रहे पर उनकी अहसास हृदय में हमेशा रहेगी ।07 जून 1949 -03 नवंबर 2018आज जनकवि लक्ष्मण जी का जन्म दिवस है उन्हें विनम्र भावांजलि ,,,,,#चित्र – जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिया जी के साथ सिध्देश्वर सम्मान लेते हुए 2017संस्मरण ..
लक्ष्मी नारायण लहरे ‘साहिल, कोसीर सारंगढ़
