अटल बिहारी के नक्शे कदम में ओपी चौधरी हार नही मानूंगा रार नई ठानूंगा
रायगढ़। चुनावी में जीत हार सिक्के के दो पहलू है। जीत आगे बढ़ने का मार्ग बन जाती है वही अमूमन हार व्यक्ति के मनोबल को तोड़ देती है। राजनीति में हारने के बाद भी हार नही मानने वाली एक शख्सियत मौजूद है जिसमे प्रदेश की जनता ओपी चौधरी के नाम से जानती है पिछले विधान सभा चुनाव के दौरान खरसिया में हार के बाद उन्हें पूरा प्रदेश जान गया बल्कि उन्हें इस हार के बाद मानने भी लगा क्योंकि राजनीति मे जानने से अधिक महत्त्व मानने का है। प्रदेश की सियासत में सुचिता और सिद्धांत का अभाव की वजह से जनता पृथक राज्य के समुचित लाभ से वंचित है।
ओपी का मानना है कि हर व्यक्ति के जीवन में कंफर्ट जोन एक दायरे में चलने वाली सतत प्रक्रिया है। जिसमें जीवन बिना व्यवधान के आराम से नियमित चलता रहता है। जीवन में ऐसा मोड भी आता है जिसमें इच्छा यह भी होती है कि अब कंफर्ट जोन से बाहर निकल जाना चाहिए लेकिन दिमाग इस कंफर्ट जोन से निकलने के खतरे भी बताएगा। उसके बावजूद ऐसे सर्कल से बाहर आने का निर्णय दिल व दिमाग से लिया गया निर्णय होता है। ऐसे व्यक्ति ही जीवन में सफल होने का इतिहास भी रचते है। दिमाग के मना करने के बावजूद अनिर्णय की स्थिति में दिल के सुनने की सलाह पर अमल करना चाहिए। इस भावनात्मक क्षण में लिए गया निर्णय ही व्यक्ति को भीड़ से अलग स्थापित करता है।
सफल लोगो के जीवन में भी कभी न कभी ऐसे ही भावनात्मक मोड़ अवश्य आया होंगे जब उन्होंने भी अपने दिल की आवाज सुनी होगी और निर्णय लिया होगा। ओपी चौधरी कहते हैं कि यदि जीवन में आराम तलब नही बनना चाहता कुछ बड़ा करना चाहता हूं। ओपी चौधरी जीवन के पहले चुनाव में हार से विचलित नहीं हुए। ऐसा मानना है कि हार जीवन की बुनियाद को हिला कर रख देती है लेकिन हार से सकारात्मक पहलुओं को तलाशने वाले ओपी विपरीत परिस्थितियो का समाना भी सकारात्मकता से करने में विश्वास रखते है। ओपी ने अपने पांच वर्षीय राजनैतिक सफर से यह प्रमाणित किया कि असफलता जीवन में सफलता का द्वार खोलती है। यदि जीवन में व्यक्ति सकारात्मक हैं तो दिल और दिमाग का द्वंद आसानी से समझ आ सकता है और आगे बढ़ने से दुनिया को कोई ताकत नही रोक सकती।
