लक्ष्मी नारायण लहरे “साहिल”
छत्तीसगढ़ की पहचान छत्तीसगढ़ की संस्कृति ,बोली , भाखा ,खान ,पान ,रहन ,सहन ,गीत ,संगीत ,नृत्य का कोई मेल नहीं है यहां की संस्कृति हमें एक दूसरे को जोड़ती है और समृद्ध है । छत्तीसगढ़ की भाखा को भले ही आज जो मान मिलना था न मिल सका है पर यहां की साहित्य समृद्ध है ।
सारंगढ़ जिला मुख्यालय के कोसीर गांव में 03 दिवसीय संत गुरु घासीदास जी की जयंती समारोह का आयोजन हो रहा है इस कार्यक्रम में 21 नवंबर को छत्तीसगढ़ के लोक कलाकर “सुरबईया ” गोरे लाल बर्मन का कार्यक्रम रखा गया है ।
गोरे लाल बर्मन नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं ।उनकी जीवन संघर्ष भरा रहा ।उन्होंने अपने जीवन में बहुत कुछ संघर्ष करके अपना नाम कमाया । उन्होंने अभ्यास को ही अपना गुरु माना । बर्मन जी से मेरी कभी मुलाकात नहीं हुई पर उनके विषय में कुछ अध्ययन और
यू – ट्यूबरों से उनके साथ मुलाकत में हुई चर्चा – परिचर्चा ,संवाद के आधार पर मुझे लिखते हुए प्रसन्नता हो रही है की वे लोक कलाकार के रूप में छत्तीसगढ़ के साथ साथ अन्य प्रदेशों में भी अपना लोहा मनवा रहे हैं । उनके सुर में जो मधुर आवाज है उसे सुनकर लोग ठहर जाते हैं उन्होंने अपने ऊपर गुजरे लम्हों और संघर्षों को गीत से लोगों तक पहुंचाया । उनके गीतों में प्रेम ,दर्द और श्रृंगार की सुखद वर्णन है । गोरे लाल बर्मन का जन्म 10 फरवरी 1973 को जांजगीर जिला के नवागढ़ में प्रसिद्ध पंडवानी गायक स्वर्गीय मंगलू राम के घर हुआ था । उनका बचपन से संगीत से गीत से लगाव रहा ।
एक तरह से कहा जाए कि पुरखौती विरासत रहा संगीत से । मोर मितान यू ट्यूब चैनल में अपने साक्षात्कार में उन्होंने अपने जीवन के अनछुए पहलुओं को लोगों के बीच रखते हुए अपने संघर्ष भरे पलों को याद कर कहते हैं।
1984 से लेकर 90 तक उस दौर में पंचराम मिर्ज़ा जी बैतल राम साहू जी लक्ष्मण मस्तुरिया जी केदारनाथ यादव जी ममता चंद्राकर जी, कविता वास्तविक जी को रेडियो में सुनता था । उनके गीतों से मुझे प्रेरणा मिला । 90 के दशक में गोरे लाल बर्मन की पहली गीत स्टूडियो में रिकाडिंग हुई थी “पहावत बिहिनिया छुनुर – छुनूर तोर पैरी ह सुनाथे” यह गीत लोगों को बहुत पसंद आया था वही भाजी टोरे ल आबे ओ गीत लोगों की जुबा पर रच बस गई और धीरे धीरे संगीत के हर कोने में उनका गीत बजने लगा । गोरे लाल बर्मन कहते हैं खुमान साव जी का मुझे पत्र मिला जिसमें साव जी ने लिखा था छत्तीसगढ़ में एक नया सबेरा का उदय हुआ है यह पत्र बहुत वायरल हुआ लोग उस पत्र को पढ़ कर चर्चा करते थे ।
30 वर्षों लगातार लोक कलाकर के रूप में अपने गीतों के माध्यम से लोगों के दिलों में रच बस गए हैं । संगीत के सुरूवाती दिनों में गोरे लाल बर्मन जत्था ,रामायण में अपनी प्रस्तुति देते थे उन्होंने कई मंच भी बनाए कारीकेंवची , चंदन माटी और लोक श्रृंगार इन मचों के माध्यम से अपनी आवाज को आगे बढ़ाते रहे आज लोक श्रृंगार मंच के जादूगर हैं । विषम परिस्थितियों में भी अपनी गायकी को आगे बढ़ाए ।
लंबे समय से लोक कलाकर के रूप में काम कर रहे हैं ।कलाकार के साथ साथ सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं वे दो बार चुनाव लडे हैं । वे कहते हैं आभाव और दर्द से जीवन गुजरा है लोगों का खूब प्यार मिला और प्यार ही जीवन का धरोहर है । पिछले 30 वर्षों से लोक कलाकर के रूप में गीत संगीत से अपनी छत्तीसगढ़ की भाखा का यश गान कर रहे हैं । छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से अब तक कोई सम्मान नहीं मिला है ।संघर्ष करते हुए आज वे आगे बढ़े हैं उनके गीतों में प्रेम, दर्द , श्रृंगार और समाज को जागरूक करने की प्रेरणा गीत भरे पड़े हैं

लक्ष्मी नारायण लहरे “साहिल”
साहित्यकार पत्रकार
कोसीर सारंगढ़
