
बहुत कम लोग अपनी पहचान बना पाते हैं ।युवा अवस्था में लोग अक्सर अपने जीवन के राह से भटक कर वास्तविक जीवन शैली से दूर हो जाते हैं कोई बेजोजगार तो कोई सिर्फ और सिर्फ मजदूर बनकर रह जाते हैं । जब ऐसे लोगों की कहानी सुना जाता है तो शिक्षा में बी ए ,एम ए रहते हैं । सही मार्गदर्शन के अभाव कहें या खुद की लाचारी या परिवार की जिम्मेदारी । एक ऐसे युवक का आज जिक्र करना चाहता हूं जिसने अपने जीवन को शिक्षा सेवा भाव में लगा दिया ।
पढ़ लिख कर मन में कुछ करने की लालसा लेकर अपने जीजा के घर आया हुआ था उसे नहीं पता था कि वह एक दिन कोसीर गांव में अपनी सेवा भाव के लिए जाना जायेगा । हिंदी में एम ए और चेहरे में सौम्यता सरल स्वभाव लिए वह सरस्वती शिशु मंदिर स्कूल में आचार्य बन गया और आज प्राचार्य के पद पर रहते हुए अपनी सेवा दे रहा है ।
पढ़ लिख कर लोग अक्सर सरकारी नौकरी की खोज खबर में जुट जाते हैं जब सरकारी नौकरी नहीं लगती तब कोई भी काम करने को अपने आप को बना लेते हैं हिंदी में पी जी करने के बाद सरस्वती शिशु मंदिर में सेवा भाव से अध्यापन के लिए जुड़ गए तब से आज तक अपनी सेवा दे रहे हैं आज सरस्वती शिशु मंदिर के प्राचार्य हैं ऐसे शख्सियत बी आर रत्नाकर …नौकरी के कुछ साल बचे अपनी जिम्मेदारियों से पीछे नहीं हटे नीलम आदित्य के बाद स्कूल को नए मुकाम में पहुंचाए ।
छोटे से गांव जोगेसरा में जन्म लिए बेदराम रत्नाकर उनके पिता का श्रीराम रत्नाकर माता का नाम रमोतीन बाई रत्नाकर जो आज ऐतिहासिक नगरी कोसीर के सरस्वती शिशु मंदिर के प्राचार्य है । गांव में उस समय को निजी स्कूल नहीं था गांव के कुछ युवा गांव में सरस्वती शिशु मंदिर की स्थापना किए पर कुछ दिन बाद बंद सा हो गया और सत्र 1998 में नए सिरे से नीलम आदित्य के हाथों इस स्कूल को सौंपा गया तब इस स्कूल की भवन भी नहीं थी इसी दौरान 2001में बेदराम रत्नाकर आचार्य के रूप में अध्यापन से जुड़े और आज तक जुड़े हुए हैं वहीं 2007 में नीलम आदित्य ने इस स्कूल से विदा ले लिए तब प्राचार्य की जिम्मेदारी बेदराम रत्नाकर को दी गई तब से आज तक पिछले 25वर्षों से अपने सेवा दे रहे हैं अपनी पूरी जीवन इस स्कूल में सेवा भाव से काम कर रहे हैं कुछ वर्षों में वे 60वर्ष के हो जाएंगे ।इस स्कूल को एक ओर नीलम आदित्य ने नींव रखी तो दूसरे तरफ उनके मित्र रहे बेदराम रत्नाकर ने इस स्कूल को उच्च मुकाम तक पहुंचाए कम वेतन में काम कर जो सेवा भाव से यहां शिक्षा का अलख जगा रहे हैं वह सराहनीय है । अपने जीवन के 25 वर्ष सेवा में गुजार दी ऐसे शिक्षकों का सम्मान जरूरी है ।जो बिना स्वार्थ के सिर्फ कम से कम वेतन में शिक्षा का अलख जगा रहे हैं । 05अगस्त1971 को जन्मे इस युवक को पता ही नहीं चला कि उन्होंने अपने जीवन के सारे गुण स्कूल में लगा दी ।ऐसे शख्सियत की आज समाज में जरूरत है जो अपने जीवन को सेवा में लगा दिए आज 05 अगस्त को वे अपने जीवन 54 वाँ वसंत पार कर जाएंगे उनको जन्म दिवस पर अशेष शुभकामनाएं।
लक्ष्मीनारायण लहरे ‘साहिल,
साहित्यकार ,पत्रकार सारंगढ़
