संपादकीय

क्लोनों को आने दो!


(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)

भाई, मोदी जी की जान को आफतें ही आफतें हैं। एक आफत को निपटाते नहीं हैं, तब तक दूसरी दरवाजे पर आकर खड़ी हो जाती है। बताइए, चुनाव में हैट्रिक लगवाई नहीं और 2024 में एक और हैट्रिक लगाने की घोषणा करवाई नहीं कि सीएम की कुर्सी मांगने वालों की लाइनें लग गयीं। चुनाव को मोदी जी ही जिताएं, सीएम भी मोदी जी ही बनाएं और इसमें पांच-सात दिन लग जाएं, तो इसके लिए गालियां भी मोदी जी ही खाएं कि हैदराबाद को तो चार दिन में ही सीएम मिल गया ; भोपाल, रायपुर, जयपुर को सीएम के लिए अब विश्व गुरु और कितना तरसाएंगे!

वैसे हम तो कहते हैं कि ये सीएम का झंझट ही फालतू है। चुनाव लड़ाया मोदी जी ने। अपने चेहरे पर चुनाव जिताया मोदी जी ने। भगवा पार्टी में से कोई मुंह खोल कर कह दे, जो किसी और ने जिताया हो तो! जब जीत मोदी जी की है, तो सीएम कोई और क्यों हो? जब मोदी जी दिल्ली की गद्दी पर बैठे-बैठे जयपुर, भोपाल, रायपुर की गद्दियां जीत के दिखा सकते हैं, तो हर जगह सीएम की गद्दी पर उन्हें ही क्यों नहीं होना चाहिए! जब पब्लिक ने उन्हें ही चुना है, तो पब्लिक के फैसले का सम्मान भी तो होना चाहिए या नहीं! डैमोक्रेसी है भाई! हमें भी पता है, पुराने टैम का कांस्टीट्यूशन इसके बीच में आता है। एक बंदा दो गद्दियों पर एक साथ नहीं बैठ सकता है, भले ही बंदा कोई भी हो! यही तो प्राब्लम है। और मोदी जी ठहरे संविधान को सिर-माथे लगाने वाले। पर यह सिर्फ तकनीकी मुश्किल है और हर तकनीकी मुश्किल का जवाब शाह जी के चाणक्य थैले में है। हरेक गद्दी पर एक अदद भरत खड़ाऊं रखवा दी जाए। गद्दी भी खाली नहीं रहे और किसी के सरकस होने का भी कोई अंदेशा कभी न हो।

हम तो कह रहे हैं कि क्लोन आने में अब और देरी ठीक नहीं है। बताइए, आर्टिफीशियल इंटैलीजेंस आ गयी, पर क्लोन नहीं आया। वर्ना मोदी जी आराम से अपने दर्जन-दो दर्जन क्लोन बनवा लेते और हरेक जीती हुई गद्दी पर एक-एक क्लोन बैठा देते। ज्यादा सोच-विचार की जरूरत ही नहीं पड़ती, न चुनाव से पहले और न चुनाव जीतने के बाद। सब के सब नंबर से पहचाने जाते, तो संविधान का पेट भी भर जाता। अब देर क्या है — क्लोनों को आने दो!

(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)

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