पल दो पल
कुछ क्षण
नही हमे तुम्हारी अहसास है
कुछ गमे थी
कुछ मुफलिसी
कुछ अपना पन
कुछ नग्मे थी
कुछ जश्न था
कुछ सिहरन थी
कुछ साँसे बची थी
कुछ उम्मीद थी
कुछ ज्यादा अहसास था
ओ पल
और
आज का ये पल
कुछ अजीब सा था
तुम थे
विशवास था
आज विशवास है
तुम नही
ये पल भी कुछ ख़ास था
पहले तड़प थी
अब प्यास है
न तुम मिलें न
न अब सिकवा है
बस अब
जीवन थोड़ा कड़वा है
पहले उमंग था
अब शंका है
कुछ तो हुआ है
कुछ होगा
कुछ नही तो
केवल और केवल प्रेम होगा ,,,,,

(06 वर्ष पहले लिखी एक कविता )
लक्ष्मी नारायण लहरे “साहिल”
साहित्यकार पत्रकार
कोसीर सारंगढ़
