72 वें जन्म दिवस पर विशेष
महापुरुषों का जीवन अनुकरणीय माना गया है। किंतु देखने में यह आता है कि आपा धापी से भरे इस संसार में जो लोग साधन – संपन्न होते हैं तथा पद ,विद्या और धन की दृष्टि से सामर्थ्यवान होते हैं वे भी व्यवहार में व्यक्तिगत स्वार्थ के लिए देश समाज और संस्कृति की ओर से आंख फेल लेते हैं।
सोनाखान के वीर सपूत शहीद वीर नारायण सिंह के जीवन से ओत – प्रोत ऐसे शख्स जो बिंझवार समाज में जन्मा और शिक्षक बनकर समाज के लिए प्रेरक बनकर समाज को एक सूत्र में पिरोकर समाज में एकता का अलख जगा रहे हैं अपने असंगठित समाज को जोड़कर नव जागृति का संदेश दे रहे हैं ।
सारंगढ़ अंचल के ग्राम सालार में जन्मे रामलाल बरिहा का जन्म जनजाति बिंझवार समाज में 07 जनवरी 1952 को हुआ । वे एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखते हैं उनके पिता का नाम स्वर्गीय भागीरथी बरिहा माता का नाम स्वर्गीय श्रीमती जगतीमति बरिहा है ।
राम लाल बरिहा अंग्रेजी में एम ए कर 1973 में शिक्षक बने ।2014 में सेवानिवृत हुए ।
रामलाल बरिहा के जीवन में शहीद वीर नारायण सिंह के जीवन से प्रभावित रहे हैं। अपने शिक्षकीय कार्य के साथ-साथ समाज को संगठित करने के लिए हमेशा तत्पर रहते थे ।बिंझवार समाज में फैली कुरीतियों को लेकर अंधविश्वासियों को दूर करने समाज के प्रति सजग रहे ।वे अपने जीवन के 71 वें बसंत मना चुके हैं और 72 वर्ष के हैं उन्होंने सारंगढ़ और आसपास के अपने बिंझवार समाज में प्रेरक का कार्य कर रहे हैं ।
रामलाल बरिहा ने अपने समाज को संगठित करने के लिए 2016 में विंध्यवासिनी पुत्र बिंझवार नाम पुस्तक लिखकर अपने समाज को संगठित करने का प्रयास किया और समाज को जोडे वहीं वे लगातार समाज को जोड़ने का प्रयास करते रहे हैं वही सारंगढ़ मुख्यालय के ग्राम
कनकबीरा में अपने कुलदेवी विंध्यवासिनी देवी की मंदिर निर्माण कर लोगों को एक सूत्र में भी पिरोए । आज उनकी यह प्रयास समाज के लिए प्रेरक के रूप में जानी जा रही है ।
बिंझवार समाज को एक सूत्र में पिरोने के लिए उन्होंने उनके छोटे पुत्र आनंद बरिहा ने अपने पिता के साथ कदम से कदम मिलाकर उनका साथ दिए। रामलाल बरिहा अब थक गए हैं लकवे के शिकार हैं फिर भी समाज के प्रति उनका सेवा भाव जारी है बिंझवार समाज में आज उन्हें प्रेरक पुरुष के रूप में लोग जानते हैं।

लक्ष्मी नारायण लहरे “साहिल”
साहित्यकार ,पत्रकार
कोसीर सारंगढ़
