साहित्‍य

छत्तीसगढ़ी कविता

सुमत के अँगना होगे रे सुनना….

चिराई -चुरगुन के सुघ्घर बोली

अँगना म गुँजय अँगना म

सुघ्घर परेवना मन नाचय

फर -फुर उड़ उड़ के पानी ल पियँ

नाना -नानी के घर होगे सुना

सुमत के घर टूट गे

भाई -भाई के मया टूट गे

अँगना ह होगे अब सुना

नई हे कोनो अब अँगना म

रुख -राई मन गुनत हे

कहाँ मोर अँगना के परेवना

सुघ्घर घर के सियानी

लईका मन के किलकारी

बिहिनिहा ले अँगना बहरैया

अँगना ह होगे सुना

चिराई -चुरगुन घला भुलागे

सुमत के अँगना होगे रे सुना …

लक्ष्मी नारायण लहरे ‘साहिल,

साहित्यकार पत्रकार

कोसीर सारंगढ़

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