सुमत के अँगना होगे रे सुनना….
चिराई -चुरगुन के सुघ्घर बोली
अँगना म गुँजय अँगना म
सुघ्घर परेवना मन नाचय
फर -फुर उड़ उड़ के पानी ल पियँ
नाना -नानी के घर होगे सुना
सुमत के घर टूट गे
भाई -भाई के मया टूट गे
अँगना ह होगे अब सुना
नई हे कोनो अब अँगना म
रुख -राई मन गुनत हे
कहाँ मोर अँगना के परेवना
सुघ्घर घर के सियानी
लईका मन के किलकारी
बिहिनिहा ले अँगना बहरैया
अँगना ह होगे सुना
चिराई -चुरगुन घला भुलागे
सुमत के अँगना होगे रे सुना …

लक्ष्मी नारायण लहरे ‘साहिल,
साहित्यकार पत्रकार
कोसीर सारंगढ़
