लक्ष्मी नारायण लहरे कोसीर।
छत्तीसगढ़ में भोजली का त्यौहार रक्षाबंधन के दूसरे दिन मनाया जाता है। छत्तीसगढ़ में सावन महीने की नवमी तिथि पर छोटी-छोटी टोकरीयों में थालियों में मिट्टी डालकर उसमें अन्न के दाने बोए जाते हैं यह दाने कुछ धान,गेहूं ,जौ, कोदो,अरहर मूंग, उड़द आदि के होते हैं।इसे भोजली कहते हैं। अलग-अलग प्रदेश में अलग – अलग नाम से जाना जाता है।

प्राचीनकाल से देवी देवताओं की पूजा अर्चना के साथ प्रकृति की पूजा किसी न किसी रूप में की जाती रही है। ग्रामीण अंचल में भोजली बोने की परंपरा का निर्वहन पूर्ण श्रद्धा के साथ किया जाता है। छत्तीसगढ़ में भोजली पर्व का विशेष महत्व है,इस दिन गांव में लोग अपने कच्चे मित्रता को भोजली भेंटकर पक्के करते हैं और सभी वर्ग को भेंट कर आदर करते हैं भोजली में लोकगीत हैं जो श्रावण मास शुक्ल से रक्षाबंधन के दूसरे दिन तक गांव गांव में गूंजती है और भादो कृष्ण पक्ष में भोजली विसर्जन किया जाता है।

कोसीर गांव में आज भी भोजली पर्व को मनाने की परंपरा है यहां रक्षाबंधन के दूसरे दिन बाजे गाजे के साथ भोजली का विसर्जन किया जाता है गांव में भोजली पर्व मनाया गया। भोजली को लेकर ग्रामीण अपने – अपने घर से समूह के रूप में निकले और गांव के बड़े तालाब में पूरे विधि विधान पूजा अर्चना कर विसर्जन किया।एक दूसरे को भेंट किया गया वही कोसीर के ऐतिहासिक देवी मंदिर माँ कौशलेश्वरी देवी पर अर्पण कर अच्छी फसल के लिए मन्नत मांगे और गांव की खुशहाली के लिए प्रार्थना की। भोजली पर्व को लेकर गांव में उत्साह रहा। इस वर्ष नया बस्ती की बालाओं ने छत्तीसगढ़ की छत्तीसगढ़ी भेष -भूषा पहनकर गांव में भोजली विसर्जन करने पहुँची हुई थी ।देर शाम तक भोजली विसर्जन किया गया ।

