सारंगढ़ - बिलाईगढ़

सारबिला जिलाँचल क़े काव्य सम्राट लक्ष्मीनारायण लहरे “साहिल”

भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है – जीवन एक संघर्ष है और इसका सामना हर प्राणी को करना पड़ता है। जो संघर्ष करते है निश्चित रूप से वे सफल होते है।


आइये आज ऐसे व्यक्ति से रूबरू होते है जिन्होंने अपने स्कूल के दिनों से ही पत्रकारिता के क्षेत्र मे विशेष रूचि लेते हुए आज अच्छे मुकाम पर पहुंच चुके है।
सारंगढ़ बिलाईगढ़ जिले के ग्राम कोसीर के समाज सेवक, महादानी व्यक्ति स्व. श्री मुन्नादास लहरे के पौत्र लक्ष्मीनारायण लहरे “साहिल” जी क़े बारे में जानते हैं । स्व. श्री त्रिलोचन लहरे व पुत्र वधू नीरा बाई के घर 8 नवंबर सन 1979, तिथी – मार्गशीर्ष शुक्ल पक्ष पंचमी दिन गुरुवार को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। जिसका नाम लक्ष्मीनारायण रखा गया । लक्ष्मीनारायण पढ़ाई लिखाई में बहुत होशियार थे।वें कक्षा नवमी में पढ़ रहे थे तभी से पत्रकारिता मे विशेष रूचि हुई और तभी से लेखन कार्य करते आ रहे है।उनकी पहली रचनाएँ सन 1993 से पत्रकारिता के क्षेत्र मे लेख, आलेख, व, कविताएं प्रकाशित हो रहे है, वर्तमान मे इनकी 500 से अधिक लेख, आलेख, कविताएं पत्र, पत्रिकाओं मे प्रकाशित हो चुकी हैं।
13 नवंबर 2023 को ज़ब मै अपने शोध कार्य क़े लिए डेटा कलेक्शन हेतु कोसीर गाँव पहुंची, वहाँ मेरी मुलाक़ात सहज, सरल, मृदु स्वभाव क़े धनी कवि लक्ष्मी नारायण लहरे जी से हुई। उनके घर से लगा कुटिया जहाँ दीवारे जर्जर और सिलन पड़ी हुई थी। उस सिलन भरी दिवार में मैंने उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद जी की तस्वीर लगी हुई देखी । लहरे जी ने बताया की वे इसी कुटिया में ही साहित्य कृतित्व करते है। मैंने उनकी प्रेमचंद जी पर रचित कविता पढ़ी, मुझे बहुत अच्छा लगा कविता इस प्रकार है –
मेरी कुटिया में मुंशी प्रेमचंद जी आराम फरमाते है
न भूख न प्यास की चिंता
न मान न सम्म्मान की चिंता
वें दिवार पर टंगे है
सुबह से शाम तक
न जाने कितने संदेश चुप-चाप कह जाते है
मेरी कुटिया में मुंशी प्रेमचंद जी आराम फरमाते है।।
इससे पता चलता है की साहित्यकार को मुंशी प्रेमचंद जी क़े प्रति कितना गहरा लगाव हैं।
इनकी कुछ कविताएं जो मुझे अच्छी लगी – मोर गाँव के माटी, लहरे जी अपने जन्मभूमि क़े महिमा का गुणगान किये है और सारंगढ़ राज जो विरासत काल से चली आ रही गढ़ विच्छेदन का भी जिक्र किये है। जो इस प्रकार है –

मोर गाँव क़े माटी सुघ्घर हे
ये माटी मोर चिन्हारी हे
जिन्हा जन्म लिस मुन्नादास ह
सिक्छा बर दिस दान
मोर हावय ये माटी ल चिन्हारी
ये माटी म माथ नवाव
जिन्हा सुघ्घर कुसलाई दाई मंदिर हे।।लक्ष्मीनारायण को स्कूल के दिनों मे ही पत्रकारिता मे विशेष रूचि रही। लक्ष्मीनारायण सन 1993-94 से पत्रकारिता के क्षेत्र मे लेख, आलेख, व, कविताएं लिखते आ रहें है। वर्तमान मे इनकी 500 से अधिक लेख, आलेख, कविताएं पत्र, पत्रिकाओं मे प्रकाशित हो चुकी है।
लक्ष्मीनारायण जी की पहली रचना – रंगीली, काव्य एवम गीत संग्रहनवअंकुर पत्रिका मे 10 कविताएं प्रकाशित हो चुकी है।
अन्य रचनाएँ कुछ इस प्रकार है _
जीवन के पथ, ज़िन्दगी का रंगमंच, गाँव की गलियों मे लौटने का मन करता है है।
काव्य संग्रह– टूटते सितारों की उड़ान। शब्दो की चहल कदमी। मे 10-10 कविताओं का संग्रह है।लक्ष्मी नारायण जी साहिल कवि के नाम से जाने जाते है। साहिल जी हिंदी व छत्तीसगढ़ी भाषा मे रचनाएँ करते है। इनकी रचनाओं मे ग्रामीण जीवन,नारी उत्थान , समाज, गरीबी, बचपन, एवम प्रकृति की झलक दिखालाई पड़ती है।
साहिल जी को पत्रकारिता एवम साहित्य सृजन के लिए अनेको पुरस्कार से नवाजे जा चुके है। साहिल जी अपने अंचल के साथ -साथ राज्य स्तर पर विशेष पहचान बना चुके है। साहिल जी एक किसान परिवार से है। घर मे आय का साधन केवल क़ृषि मजदूरी पर निर्भर है। साहिल जी किशोरा अवस्था से ही साहित्य कृतिया कर रहें है। उस समय न तो इंटरनेट था और न ही मोबाईल थी। डाक के माध्यम से अपनी रचनाएँ पत्रकारो के पास भेजा करते थे। आर्थिक परिस्थिति भी ठीक नही थी। ऐसे विषम परिस्थितियों का सामना करते हुए आज साहिल कवि हिंदी साहित्य सृजन जगत के चमकते सितारे है। हिंदी साहित्य सृजन हेतु – छत्तीसगढ़ काव्य रत्न काव्यरत्न श्री, काव्यलंकार श्री,काव्य श्री,साहित्य कला रतन,साहित्य कला श्री,काव्य गौरव, काव्य साम्राट, माँ वीणापाणि तथा पत्रकारिता के क्षेत्र मे कई सम्मान प्राप्त कर चुके हैं।


सारंगढ़ बिलाईगढ़ क़े वरिष्ठ पत्रकार, कवि लक्ष्मीनारायण लहरे जी की अवतरण दिवस की बहुत बहुत बधाई एवम उज्जवल भविष्य की शुभकामनायें ।
श्रीमती पुष्पा बरिहा
शोध छात्रा (हिंदी )
कलिंगा विश्वविद्यालय नया रायपुर
छत्तीसगढ़ (भारत )

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