सांवले रूप में
सजल स्नेह की
सजी है मुस्कान
तुम्हें देख कर न जाने क्यों फिर मन में उठी है आस
अतीत के पन्नों से
पुराने पुस्तक से
तुम्हारा नाम पढ़ा
गुजरे पलों को
अनदेखा न कर सका
तुम्हारे स्नेह के उन पलों को न भूल सका
आंखों की ओ सरारत
होठों की ओ चाहत
बहके बहके कदम
शिकायत और प्यार
छुप कर राहें निहारना
फिर एक बार हुआ अहसास
उस स्नेह और प्यार का
कई बार पत्रों में तुम्हारा जिग्र हुआ
तुम्हें अभिनंदन
प्रेम दिवस का

लक्ष्मी नारायण लहरे “साहिल”
साहित्यकार पत्रकार
कोसीर सारंगढ़
