अप्रैल की दोपहरी देखा तुम्हें
तस्वीर में …उतार ली सांवली रूप
मन को भा गई ,हृदय में समा गई
तुमसे मिलकर जब घर लौटा
कई दिन तक ,तुम्हें समझने की कोशिश हुआ
बीत गए कई माह
तुम यादों में बसी रही
अंतिम निर्णय हुई !
दांपत्य जीवन में बंध गए
कैसे गुजरा जीवन के पंद्रह बसंत खुशी के
तुम मेरे जीवन के नव गाथाएं बन गई
सुबह का सूरज ,सांझ का दीपक बनकर
अपने जीवन के अनुभवों से मुझे स्वीकार कर
मेरे जीवन में नव सुबह गढ़े
तुम्हें हृदय से बधाई ,
हे!संगिनी सांवली तुलसी
यह नया वर्ष की जन्मोत्सव की बधाई तुम्हें …
(अपने संगिनी तुलसी जी को उनके आज 37 वें जन्म दिवस पर समर्पित कविता )
लक्ष्मी नारायण लहरे “साहिल”
साहित्यकार ,पत्रकार
कोसीर सारंगढ़
