सम्पादकीय / त्वरित टिप्पणी
संदर्भ – मेला – मड़ाई
छत्तीसगढ़ में मेला मड़ाई का एक अलग पहचान और महत्त्व है। भारतीय संस्कृति के अनुरूप भारत अनेकता में एकता का देश है ।भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है यहां अलग अलग धर्म ,जाति – पांति ,समुदाय के लोग निवासरत हैं और सभी वर्ग का एक अलग पहचान है ।एक दूसरे के सुख दुख तीज त्यौहार पर्व में हंसी खुशी से सामिल होकर अपनत्व की भावना रखते हैं और सम्मान करते हैं । भारत की संस्कृति अन्य देशों से हटकर है जो भारत की महानता को दर्शाती है यह देश ऋषि मुनियों संत महापुरुषों शहीदों का देश है ।भारत के अलग अलग प्रदेश में अलग अलग भाषाएँ ,रीति रिवाज ,रहन सहन ,खान पान ,संस्कृति में विविधता है फिर भी अपने आप मे एक अलग पहचान है ।
छत्तीसगढ़ में मेला मडाई और और यहां की संस्कृतिक विविधता का एक अलग महत्व है यहां की बोली छत्तीसगढ़ी बोली है छत्तीसगढ़ एक स्वतंत्र प्रदेश होने के बाद यह प्रदेश देश में अलग पहचान रखता है और राज भाषा का दर्जा मिल गया है पर 08 वीं अनुसूची में यहां की भाषा को अभी तक पूर्ण भाषा का दर्जा नहीं मिल पाया है जो दुर्भाग्य है ? छत्तीसगढ़ 01 नवम्बर 2000 को अस्तित्व में आया तब से आज तक बहुत सारे परिवर्तन हुए है और एक अलग पहचान बनाई है इस लेख में छत्तीसगढ़ की मेला मडाई के संदर्भ में यह बात मैं स्पष्ट करना चाहूंगा ।यह लेख ग्रामीण मेला मडाई के संदर्भ में ही है । इन दिनों गांव से लेकर शहर तक मेला मडाई अपने परवान पर है वैसे तो छत्तीसगढ़ में मेला मडाई का अलग अलग पहचान है ।

मेला से तात्पर्य खुशियों से है अर्थात मेला में उमंग ,उत्साह ,उल्लास है बच्चे ,किशोर ,बूढ़े युवक – युवतियोन का झुंड ,झूला शर्कश ,सजी धजी दुकाने ,मिठाई ,उखरा लाई की दुकानें समझों यही भरा है खुशियों का मेला जहां बचपन गुम जाता है ।मेला लोक परम्पराओ से जुड़ा है इसका धार्मिक ,सामाजिक आर्थिक व सांस्कृतिक स्वरूप से जुड़ा है ।मेला शब्द में उत्साह और प्रेम है ।हाट बाजार व मेले में काफी अंतर है ।ग्रामीण अंचल में मेला मडाई से तात्पर्य अंचल में होने वाले छोटे छोटे मेला से है जिसे हम मड़ाई कहते है या गहिरा कहते है ।कार्तिक पूर्णिमा एकादशी देवउठनी पर्व के दिन से रावत समाज दुवारा अपनी पारम्परिक भेष भूषा में सज धज कर डोल नगारे ,बाजे गाजे के साथ नृत्य करते हुए अपने घर से निकलते है और यह नृत्य को राउत नाचा के नाम से अंचल में जाना जाता है और पूरे छत्तीसगढ़ में यह राउत नाचा प्रशिद्ध है । यह नाचा तब तक उस अंचल में चलते रहता है जब तक उस अंचल में मड़ाई मेला न हो जाये औऱ जिया दिन गांव शहर में होना रहता है उस दिन आस पास गांव के यादव समाज के लोग उस मेले में पहुंचकर अपना नृत्य करते है और शौर्य का प्रदर्शन करते हैं गांव में एक दिन का मेला भरता है जहां झूले शर्कश दुकाने लोगों का भीड़ और उत्साह रहता है । जांजगीर जिला में सक्ति का मडाई मेला सारंगढ़ जिला में कोसीर सारंगढ़ का मड़ाई मेला प्रशिद्ध है ।कोसीर में 22 दिसम्बर को आज मड़ाई मेला भर रहा है जो 05 दिन तक चलेगी ।मड़ाई मेला को लेकर पूरे अंचल में उत्साह का माहौल है

लक्ष्मी नारायण लहरे ” साहिल “
साहित्यकार पत्रकार
कोसीर सारंगढ़
